जीवन की रजत जयंती तक
दिन बीते, जुग बीते, कभी समय ना इतना पाया ।
कि सोच सकूँ , कुछ गौर करूँ, जीवन की रजत जयंती तक,
मैंने क्या खोया, और क्या पाया ॥
कितने छूटे, कितने मिल गए, कितनों ने ह्रदय लगाया ।
किसको खुशियाँ दी, किसके मन को भाये, जीवन की रजत जयंती तक,
किसको खोया मैंने , और किसने मुझको ठुकराया ॥
कभी हँसे, कभी खुद रोये , और कितनों को रुलाया ।
किसने ने अपनाया , किसने किया पराया , जीवन की रजत जयंती तक,
मैंने किसको दी खुशियाँ , और किसको दुःख पहुँचाया ॥
कभी बढ़े , कभी हटे, समझ न इतना आया।
कि किधर चला मैं, दिशाहीन हो, जीवन की रजत जयंती तक ,
मंजिलों से दूर हुआ मैं, या और पास हूँ आया ॥
समय हुआ यूँ , एक मदारी, क्या क्या खेल दिखाया ।
पता चली ना, क्रीड़ा इसकी, जीवन की रजत जयंती तक,
आसमान से दे धक्का , फिर सागर में पहुँचाया ॥
दिन बीते, जुग बीते, कभी समय न इतना पाया ।
की सोच सकूँ , कुछ गौर करूँ , जीवन की रजत जयंती तक,
मैंने क्या खोया, और क्या पाया ॥
-अनुभव वर्मा
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