Wednesday, September 7, 2011

जीवन की रजत जयंती तक

जीवन की रजत जयंती तक


दिन बीते, जुग बीते, कभी समय ना इतना पाया ।

कि सोच सकूँ , कुछ गौर करूँ, जीवन की रजत जयंती तक,

मैंने क्या खोया, और क्या पाया ॥


कितने छूटे, कितने मिल गए, कितनों ने ह्रदय लगाया ।

किसको खुशियाँ दी, किसके मन को भाये, जीवन की रजत जयंती तक,

किसको खोया मैंने , और किसने मुझको ठुकराया ॥


कभी हँसे, कभी खुद रोये , और कितनों को रुलाया ।

किसने ने अपनाया , किसने किया पराया , जीवन की रजत जयंती तक,

मैंने किसको दी खुशियाँ , और किसको दुःख पहुँचाया ॥


कभी बढ़े , कभी हटे, समझ न इतना आया।

कि किधर चला मैं, दिशाहीन हो, जीवन की रजत जयंती तक ,

मंजिलों से दूर हुआ मैं, या और पास हूँ आया ॥


समय हुआ यूँ , एक मदारी, क्या क्या खेल दिखाया ।

पता चली ना, क्रीड़ा इसकी, जीवन की रजत जयंती तक,

आसमान से दे धक्का , फिर सागर में पहुँचाया ॥


दिन बीते, जुग बीते, कभी समय न इतना पाया ।

की सोच सकूँ , कुछ गौर करूँ , जीवन की रजत जयंती तक,

मैंने क्या खोया, और क्या पाया ॥


-अनुभव वर्मा

No comments:

Post a Comment